मैं पहाड़ों कू रैबासी, तू दिल्ली रैण वाली गीत से भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी को घेरने की कोशिशें नाकाम हो गईं। गढ़वाल संसदीय सीट के मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान करके साफ कर दिया कि बलूनी भी उतने ही पहाड़ों के रैबासी हैं।

 

चुनाव में कांग्रेस ने बलूनी के दिल्ली की राजनीति तक सीमित रहने को मुद्दा बनाया, जबकि राज्यसभा सांसद के तौर पर बलूनी राज्य के सरोकारों को लेकर हमेशा सक्रिय रहे। इसी वजह से वह चुनाव में उतरने के पहले दिन से ही अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल ने चुनावी जंग में जिस बुलंद अंदाज में आगाज किया, हर किसी की निगाहें उनकी तरफ दौड़ पड़ीं।

 

चुनाव से पहले पस्त नजर आ रही कांग्रेस भी गढ़वाल और गोदियाल की ओर उम्मीद से देखने लगी। अनायास गढ़वाल का चुनावी समर चर्चाओं में आ गया। एक बार के लिए भाजपा और उसके क्षत्रप तक का आत्मविश्वास इस संसदीय सीट पर डगमगाता नजर आया। अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए कांग्रेस ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। कभी अवैध शराब तो कभी रैबासी के मुद्दे पर उसने भाजपा प्रत्याशी को घेरने की कोशिश कीं।

 

प्रचार युद्ध में एक गीत मैं पहाड़ों कू रैबासी तू दिल्ली रैण वाली तीर की तरह कांग्रेस के तरकश से बाहर निकला। कांग्रेस ने जनता के बीच यह जताने की कोशिश की कि बलूनी दिल्ली में रहते हैं और चुनाव लड़ने के लिए गढ़वाल आए हैं, लेकिन कांग्रेस अपने इसी दांव में फंसती दिखी, जब भाजपा ने दस्तावेजों के साथ यह साबित करती दिखी कि गणेश गोदियाल भी मुंबई के ही रैबासी हैं और राजनीति के लिए गढ़वाल में हैं। लेकिन, गढ़वाल के मतदाताओं ने बलूनी को चुनाव जिताकर साबित कर दिया कि बलूनी भी उतने ही पहाड़ी हैं जितने गणेश गोदियाल।

 

 

गढ़वाल सीट पर बलूनी की जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू एक फिर चला। गढ़वाल संसदीय सीट पर बदरीनाथ और केदारनाथ पुनर्निमाण परियोजना, चारधाम ऑलवेदर, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल परियोजना के अलावा डबल इंजन की सरकार की कल्याणकारी और लाभकारी योजनाओं के प्रचार से भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल बनाया और जीत का पटकथा लिखी।गढ़वाल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर नए चेहरे बलूनी को उतार कर भाजपा ने कांग्रेस से प्रत्याशी के खिलाफ बने सत्तारोधी रुझान के मुद्दे को पहले ही छीन लिया था।

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